याद कैसे करें || How to Learn Easily || Tips & Tricks

 



कैसे याद करें?

किसी बात को सीखने तथा अनुभव करने के बाद उसको याद्दाश्त द्वारा ही स्थिर रखा जा सकता है। अनुभव और सीखी हुई बातों को मस्तिष्क द्वारा स्थिर रखने की क्षमता को ही याद्दाश्त कहते हैं, मनुष्य के जीवन में जो भी छोटी-से-छोटी या बड़ी-से-बड़ी घटना घटती है, उसका एक प्रकार का लेखा-जोखा मस्तिष्क में दर्ज हो जाता है। मस्तिष्क में घटनाओं का लेखा-जोखा धीरे-धीरे धुंधला होता रहता है, इसी को हम भूलना कहते हैं।

अत: यदि किसी अनुभव और सीखी हुई बात को बार-बार दोहराया जाए तो बार-बार ही उसका मस्तिष्क में प्रभाव होता रहेगा और वे अनुभव और सीखी हुई चीजें हमें याद रहेंगी।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्ति चार प्रकार से सीखता या याद करता है-पहला प्रकार क्लासिकल कंडीशनिंग का है, इस सम्बन्ध में सन् 1900 में इवाज पावलोव के एक कुत्ते पर प्रयोग किए थे, उसने एक कुत्ते को कुछ खाने को दिया और साथ ही एक घण्टी बजा दी। खाना देख कर कुत्ते के मुँह में लार आ गई पावलोव ने इसे बिना सीखी हुई क्रिया कहा लेकिन कुछ दिनों के बाद खाने को बिना देखे केवल घण्टी की आवाज सुन कर ही कुत्ते के मुँह में लार आने लगी इसे सीखी हुई क्रिया कहा गया। सीखने के दूसरे प्रकार को स्वयं कार्य करके सीखना कहते हैं। प्रायः व्यक्ति स्वयं कोई कार्य या क्रिया करता है और उस क्रिया के कारण जो कुछ घटित होता है, उससे वह सीखता है। तीसरे प्रकार का सीखना होता है |

जिसमें हम किसी विशेष कौशल के कार्य को सीखते हैं। इसमें पहले सरल-सरल बातें सीखी जाती हैं और बाद में कठिन। इसके अन्तर्गत टाटा करना जैसे कौशल आते हैं। टाइपिंग सीखने में हम पहले एक-एक अक्षर टाइप करना सीखते हैं, फिर क्रमशः शब्दों और वाक्यों को टाइप करना।

चौथे प्रकार का सीखना किसी समस्या को हल करने की विधि सीखना है इसमें हम यह सीखते हैं कि समस्या के भिन्न-भिन्न भाग एक दूसरे के साथ कैसे संगत करते या बैठते हैं। इसका सरल उदाहरण एक बच्चे द्वारा मेज पर बैठने का प्रयत्न करना है। बच्चा कुर्सी पर चढ़ने के लिए स्टूल पर चढ़ता है फिर कुर्सी पर चढ़ कर मेज पर बैठ जाता है।

 मस्तिष्क की याद्दाश्त के विषय में अब तक दो सिद्धान्त दिए गए हैं। एक सिद्धान्त के अनुसार याद्दाश्त एक गतिशील प्रक्रिया है, जब कोई भी चीज हम सीखते हैं या अनुभव करते हैं तो उसके फलस्वरूप हमारे शरीर के तन्तुओं के आवेग पैदा होते हैं। ये तन्तु आवेग हमारे मस्तिष्क में उपस्थित न्यूरॉन्स पर अपना प्रभाव छोड़ देते हैं और इस प्रकार सीखे हुए अनुभवों का लेखा-जोखा हो जाता है। इस सिद्धान्त को काफी मान्यता दी गई है। दूसरे सिद्धान्त के अनुसार अनुभवों और सीखने के फलस्वरूप हुए संवेदन से मस्तिष्क में कुछ स्थायी परिवर्तन हो जाते हैं जो याद्दाश्त के रूप में रहते हैं। कुछ जीवशास्त्रियों के अनुसार मस्तिष्क उपस्थित राइबो न्यूक्लिक एसिड आर.एन.ए. में यादों का लेखा-जोखा होता रहता है। यह देखा गया है कि न्यूरॉन्स में आर.एन.ए. की मात्रा 3 साल की उम्र से 40 साल की उम्र तक बढ़ती है। इन वर्षों में मनुष्य की याद्दाश्त भी बढ़ती है, 40 से 55 या 60 वर्ष की उम्र तक न्यूरॉन्स में आर.एन.ए. की मात्रा लगभग स्थिर रहती है, इसलिए इस उम्र में लगभग याद्दाश्त भी स्थिर रहती है। 60 वर्ष के बाद आर.एन.ए. की मात्रा कम होने लगती है और याद्दाश्त भी कम होने लगती है।

सीखी हुई बातों या अनुभवों को याद के रूप में स्थिर रखने का एक ही प्रभावशाली तरीका है, वह है चीजों को बार-बार दोहराना, याददाश्त को प्रतिबिम्बों द्वारा कायम रखने का दूसरा तरीका भी मनोवैज्ञानिकों ने बताया है, यदि किसी घटना या वस्तु की मस्तिष्क में एक तस्वीर बना ली जाए, तो वह चीज बहुत दिनों तक याद रहती है। कुछ बातें सुनने से भी याद रहती हैं, जैसे कई गीत एक या दो बार सुनने से याद हो जाते हैं।

 स्मरण शक्ति अथवा याद्दाश्त बढ़ाने के कुछ उपाय अवश्य ध्यान में रखें। - याद्दाश्त बढ़ाने के लिए इच्छा होना, याद की जाने वाली बात का रुचिकर होना, व्यक्ति में उसकी समझ होना, नई बात को पुरानी सीखी हुई बात के साथ जोड़ लेना, मन में उसका चित्र बना लेना और बार-बार उसे दोहराना।


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